Monday, November 23, 2020

2024 की तैयारी में जुटी बीजेपी, 120 दिन तक देश के हर राज्य का दौरा करेगी जेपी नड्डा

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 भाजपा अभी से अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है।  इसके मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा दिसंबर महीने में 120 दिनों के देशव्यापी दौरे की शुरुआत करेंगे और संगठन की कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करेंगे।



 खास बातें

●  2019 में जहां भाजपा का कमजोर प्रदर्शन था वहां पार्टी  को मजबूत करेंगे नड्डा

●  देशव्यापी दौरों पर पार्टी की तैयारियों का जायजा लेंगे नड्डा

● नड्डा से पहले भाजपा के अध्यक्ष रहे अमित शाह ने भी    देशभर का दौरा किया था


नई दिल्ली: भाजपा अभी तक अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है।  इसके मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा दिसंबर महीने में 120 दिनों के देशव्यापी दौरे की शुरुआत करेंगे और संगठन की कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करेंगे।  भाजपा महासचिव अरुण सिंह ने रविवार को संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि नड्डा का यह दौरा दिसंबर महीने के पहले सप्ताह में उत्तराखंड से शुरु होगा।  संभावना है कि नड्डा पांच दिसंबर से अपने दौरे की शुरुआत करें।


 सांसदों, विधायकों और जिलाध्यक्षों की बैठक करेंगे नड्डा

 अरुण सिंह ने कहा, प्रवास योजना इस प्रवास योजना में प्रत्येक बो अध्यक्ष और बो समितियों के साथ बैठक होगी।  प्रभाग के अध्यक्ष और मंडल समितियों के साथ बैठक होगी।  राष्ट्रीय अध्यक्ष जी इस प्रवास योजना के अंतर्गत बूथ समितियों और प्रभाग के कार्यकर्ताओं को भी काम करने के लिए प्रेरित करेंगे। '' उन्होंने बताया कि इस दौरान वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और सांसदों और विधायकों के अलावा जिलाध्यक्षों के साथ भी बैठक करेंगे। अरुण सिंह ने कहा कि भाजपा अध्यक्ष अपने इस प्रवास कार्यक्रम के दौरान जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहां पार्टी की तैयारियों का जायजा लेंगे और संगठन की स्थिति की समीक्षा करेंगे।  इस दौरान वे पार्टी की रणनीति को लेकर भी चर्चा और समीक्षा करेंगे।  उन्होंने कहा, कार्यक्रम कार्यक्रम इस प्रवास कार्यक्रम का उद्देश्य संगठन को और मजबूती प्रदान करना और हर बो इकाई को और सक्रिय करना व मजबूत बनाना है। '' ''


बड़े शहरों में 3 और छोटे शहरों में 2 दिन बिताएंगे नड्डा

 उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जिन संसदीय क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, उन क्षेत्रों में संगठन की मजबूती को लेकर नड्डा रणनीति पर चर्चा भी करेंगे।  ज्ञात हो कि 2021 के पहले छह महीने में पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और असम में विधानसभा चुनाव होते हैं।  प्रवास के 120 दिनों के कार्यक्रम के दौरान नड्डा बड़े शहरों में तीन दिन और छोटे शहरों में दो दिन के बिताएंगे।


 भाजपा शासित राज्य इस दौरान अपने विकास कार्यों और केंद्र सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन के सिलसिले में एक चुनौती भी देंगे।  सिंह ने बताया कि नड्डा इस दौरान सहयोगी दलों के प्रमुखों से भी मिलेंगे और जनसभाओं के साथ पत्रकार वार्ता को भी संबोधित करेंगे।  नड्डा से पहले भाजपा के अध्यक्ष रहे अमित शाह ने भी अपने कार्यकाल के दौरान पूरे देश का दौरा किया था।  जिन राज्यों में भाजपा की स्थिति कमजोर थी, वहां पार्टी को मजबूत करने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है।

Monday, September 14, 2020

चीन के सरकारी अखबार ने की शांति की बात, कहा- भारत पर चीन की नीति में बदलाव नहीं

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पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर पिछले कई महीनों से भारत औऱ चीन के बीच तनाव चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज संसद सत्र के दौरान कड़े शब्दों में चीन को जवाब दिया है. अब चीन के सरकारी अखबार ने शांति की बात कही है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि चीन ने भारत को लेकर अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं किया है. चीन का ये अखबार पहले कई बार भारत से युद्ध की बात कह चुका है.

सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा है, ‘’हम भारत को दुश्मन की तरह नहीं देखते हैं. भारत को लेकर हमारी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है. दिपक्षीय संबंधों को स्थिर और मजबूत बनाने के लिए हम भारत से सहयोग करने के लिए तैयार हैं.’’



 
पुरानी स्थिति बहाल होने में थोड़ा वक्त जरूर लगेगा- ग्लोबल टाइम्स


अखबार ने कहा, ‘’पुरानी स्थिति बहाल होने में थोड़ा वक्त जरूर लगेगा, दोनों देशों को एक दूसरे से मुलाकात करते रहना होगा.’’


चीन को पीएम मोदी का संदेश


संसद का मानसून सत्र सोमवार को शुरू होने से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारतीय सेना के जवानों के पीछे पूरा देश खड़ा है, यह सदन और सदन के सभी सदस्य एक मजबूत संदेश देंगे. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, आज जब हमारी सेना के वीर जवान सीमा पर डंटे हुए हैं, जिस विश्वास के साथ खड़े हुए है, मातृभूमि की रक्षा के लिए डटे हुए है. यह सदन भी, सदन के सभी सदस्य एक स्वर से, एक भाव से, एक भावना से, एक संदेश देंगे कि सेना के जवानों के पीछे देश खड़ा है.


दूसरे रास्तों से भारत के खिलाफ साजिश रचने में जुटा चीन


पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन के बीच तीन महीनों से तनाव है. भारतीय सेना ने जिस तरह चीन को उसकी हद में रहने पर मजबूर कर दिया, उसके बाद तो ड्रैगन दूसरे रास्तों से भारत के खिलाफ साजिश रचने में जुट गया है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से एक बड़ा खुलासा हुआ है. जिसके मुताबिक, चीन भारत के बड़े राजनीति और सामिरक क्षेत्र में बड़े पदों पर बैठे लोगों की जासूसी करा रहा है. इस जासूसी लिस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पांच प्रधानमंत्रियों, पूर्व और वर्तमान के 40 मुख्यमंत्रियों, 350 सांसद, कानून निर्माता, विधायक, मेयर, सरपंच और सेना से जुड़े समेत करीब 1350 लोगों के नाम शामिल हैं.




कैलाश पर्वत श्रृंखला को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के लिए भारत के 'ब्रह्मास्त्र' ने निभाई थी अहम भूमिका

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चीन को पटकनी देने के लिए भारत ने अपना 'ब्रह्मास्त्र' इस्तेमाल किया था. इसके चलते 29-30 अगस्त की रात कैलाश पर्वत श्रृंखला के एक बड़े हिस्से पर भारत ने एक बार फिर अपना अधिकार जमाया.



एलएसी पर चीन को पटकनी देने के लिए भारत को अपना 'ब्रह्मास्त्र' इस्तेमाल करना पड़ा था. इस ब्रह्मास्त्र के चलते ही 29-30 अगस्त की रात पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण में कैलाश पर्वत श्रृंखला के एक बड़े हिस्से पर भारत एक बार फिर अपना अधिकार जमा सका. ये इलाका '62 के युद्ध में हार के बाद भारत चीन के हाथों गंवा चुक था. लेकिन भारत के ब्रह्मस्त्र ने चीन के खिलाफ ऐसी चाल चली की चीनी सेना को 45 साल बाद एलएसी पर फायरिंग करनी पड़ी. ये 'ब्रह्मास्त्र' है भारत की माउंटेन स्ट्राइक कोर.


एबीपी न्यूज को जो एक्सक्लुजिव जानकारी मिली है जिसके मुताबिक, 29-30 अगस्त की रात पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण में जो 'प्रिम्टीव' कारवाई कर गुरंग हिल, मगर हिल, मुखपरी और रेचिन-ला दर्रे को अपने अधिकार-क्षेत्र में कर लिया था. उसमें भारत सेना की माउंटेन स्ट्राइक कोर की एक अहम भूमिका थी. ये पूरा इलाका कैलाश श्रृंखला का हिस्सा है.


पश्चिम बंगाल के पानागढ़ स्थित इस‌ 17वीं कोर को पहाड़ों पर युद्ध लड़ने में महारत हासिल है. माउंटेन स्ट्राइक कोर में इंफेंट्री सैनिकों के साथ साथ उस रात चुशुल सेक्टर में बीएमपी व्हीकल (आईसीवी यानि इंफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल) और टैंकों की एक ब्रिगेड के साथ साथ एसएफएफ (स्पेशल फ्रंटियर फोर्स) के कमांडो भी थे.



जानकारी के मुताबिक, माउंटेंन स्ट्राइक कोर के सभी 'मिलिट्री-एलीमेंट्स' ने एक साथ पैंगोंग-त्सो के दक्षिण में करीब 60-70 किलोमीटर के दायरे में अपनी सैन्य कारवाई की. सभी को एक ही टास्क दिया गया था कि चीनी सेना से पहले इस पूरे उंची पहाड़ों वाले इलाकों को 'डोमिनेट' करना है. क्योंकि खुफिया जानकारी मिल रही थी कि चीनी सेना इस पूरे इलाके पर कब्जा करना चाहती है.


माउंटेन स्ट्राइक कोर ने एक साथ सभी पहाड़ों पर चढ़ाई कर शुरू कर दी. कुछ ही घंटों में पैंगोंग त्सो से सटे हुए हैनान-कोस्ट से लेकर रेचिन ला दर्रे तक भारत ने अपना अधिकार जमा लिया. रेजांगला और रेचिन ला दर्रे पर तो भारतीय सेना ने अपनी टैंक ब्रिगेड को तैनात कर दिया. लेकिन ब्लैक टॉप पर चढ़ते वक्त एक लैंडमाइन ब्लास्ट में एसएफएफ के एक कमांडो (तिब्बती मूल के नियेमा तेनजिन) वीरगति को प्राप्त हो गए और एक अन्य कमांडो घायल हो गए.


इस ब्लास्ट के चलते भारतीय सैनिक ब्लैक टॉप की चोटी तक नहीं पहुंच पाए. सेना के सूत्रों ने ये भी साफ किया कि ब्लैक टॉप और हैलमेट टॉप पर भारत का पूरी तरह अधिकार नहीं है. ‌ओपन-सोर्स इंटेलीजेंस ने जो ताजा सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं उ‌सके मुताबिक, चीन की पीएलए सेना ब्लैक टॉप के चारों तरफ अपने कैंप जमा रही है.


आपको यहां पर ये बता दें कि माउंटेन स्ट्राइक का गठन वर्ष 2013 में डीबीओ (डेपसांग प्लेन) में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुए फेसऑफ के बाद हुआ था. जहां एक साधारण कोर (जैसे लेह स्थित 14वीं कोर) की जिम्मेदारी अपनी सीमाओं की सुरक्षा या रखवाली करना होता है, स्ट्राइक कोर का चार्टर दुश्मन की सीमा में घुसकर हमला करना होता है.



माउंटेन स्ट्राइक कोर ने पिछले साल अक्टूबर के महीने में असम और अरूणाचल प्रदेश में अपनी एक्सरसाइज की थी जिसका चीन ने आधिकारिक तौर से विरोध किया था. आपके बता दें कि भारत से पवित्र कैलाश मान‌सरोवर यात्रा के लिए सबसे छोटा‌ और सुगम रास्ता लद्दाख से ही है. '62 के युद्ध से पहले तीर्थयात्री लद्दाख के डेमचोक से ही कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए जाया करते थे.


चुशुल से डेमचोक की दूरी करीब 150 किलोमीटर है. उसके आगे डेमचोक से कैलाश मानसरोवर की दूरी करीब 350 किलोमीटर है. पैंगोंग त्सो के दक्षिण से लेकर कैलाश मानसरोवर तक यानी करीब 450 किलोमीटर तक ये कैलाश पर्वत श्रृंखला फैली हुई है. लेकिन '62 के युद्ध के बाद से ही ये रूट बंद कर दिया गया था.


29-30 अगस्त की रात भारत की कारवाई से चीनी सेना में हड़कंप मच गया है. चीनी सेना किसी भी कीमत पर इन कैलाश रेंज की पहाड़ियों को हड़पना चाहती है. इसीलिए बड़ी तादाद में चीनी सैनिक भारत की फॉरवर्ड पोजिशन के चारों के चारों तरफ इकठ्ठा हो रहे हैं. चीनी सेना अपने टैंक और आईसीवी व्हीकल्स के साथ एलएसी से सटे मोल्डो, स्पैंगूर गैप और रैकिन ग्रेजिंक लैंड पर अपना जमावड़ा कर रही है. चीनी सैनिक बरछी-भालो और दूसरे मध्यकालीन बर्बर हथियारों के साथ  वहां इकठ्ठा हो गई है.


लेकिन भारतीय सैनिकों ने साफ कर दिया है कि अगर चीनी सैनिकों ने भारत की फॉरवर्ड पोजिशन पर लगी कटीली तारों को पार करने की कोशिश की तो एक प्रोफेशनल-आर्मी की तरह चीनी सेना को कड़ा जवाब दिया जाएगा.

अरुणाचल प्रदेश के लिए अफीम, चीन से बड़ा खतरा है

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अरुणाचल प्रदेश अफीम की अवैध खेती में सबसे आगे है जो यहां की आबादी के साथ-साथ पूरे उत्तर-पूर्वी भारत के लिए एक बड़े खतरे की वजह बन सकती है




नशीली दवाओं या ड्रग्स के विरोध का अंतर्राष्ट्रीय दिवस कब होता है? यह शायद हम में से बहुत कम लोगों को पता होगा. लेकिन अरुणाचल प्रदेश के तिराप जिले में बहुत कम लोग होंगे जिन्हें यह पता न हो. दरअसल अब इस जिले में हर साल 26 जून (नशीली दवाओं के विरोध का अंतर्राष्ट्रीय दिवस) इतने जोर-शोर से मनाया जाता है कि किसी भी व्यक्ति के लिए इसकी अनदेखी करना मुश्किल है. इस दिन तिराप में कई कार्यक्रम होते हैं जिनकी तैयारियां काफी पहले शुरू हो जाती हैं. इनकी अगुवाई असम राइफल्स करता है. जिले में बड़े पैमाने पर रैलियां निकाली जाती है. युवाओं व बच्चों के कार्यक्रम होते हैं और कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं. इस पूरे आयोजन का एक ही मकसद है. लोगों को नशे, खासकर अफीम के नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित करना.

अभी तक पंजाब के बारे में माना जाता है यहां ड्रग्स की लत के चलते युवाओं की एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो चुकी है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक पिछले दो साल के दौरान ड्रग्स के इस्तेमाल और कारोबार से जुड़े कानून के तहत पूरे देश में जितने मामले दर्ज हुए, तकरीबन आधे पंजाब से ही हैं. राज्य में पाकिस्तान की सीमा की तरफ पड़ने वाले जिलों - बठिंडा, मोगा, अमृतसर और तरनतारन - में यह समस्या खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि अफीम की अवैध खेती के चलते कुछ सालों के बाद पूर्वोत्तर का सबसे शांत राज्य अरुणाचल प्रदेश इससे भी बड़ी श्रेणी में आ सकता है. इसकी वजह यह है कि यह अवैध अफीम का बहुत बड़ा उत्पादक भी है.

नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के हालिया आंकड़ों के अनुसार 2014-15 के दौरान पूरे देश में 2,530 एकड़ में अफीम की अवैध फसल नष्ट की गई है. लेकिन इसमें से 1067 एकड़ फसल अकेले अरुणाचल प्रदेश की थी. इसका मतलब है कि अफीम की अवैध खेती का 40 फीसदी हिस्सा अकेले अरुणाचल प्रदेश में उगाया जा रहा था. यह आंकड़ा हाल ही उजागर हुआ है और इसके बाद से सुरक्षा एजेंसियों से लेकर सामाजिक संगठन तक सकते में हैं.

अरुणाचल प्रदेश में अफीम की अवैध खेती और लोगों के बीच बढ़ती नशे की लत पर विशेषज्ञ कुछ सालों से लगातार चेतावनी दे रहे हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ नार्कोटिक्स स्टडी एंड एनालिसिस (इंसा) ने 2010 में पूर्वी अरुणाचल प्रदेश के अंजा और लोहित जिले में एक व्यापक सर्वे किया था. इंसा ने पाया था कि यहां सैकड़ों एकड़ में अफीम की अवैध खेती हो रही है. यही नहीं इन जिलों की एक बड़ी आबादी नशे की गिरफ्त में थी. इंसा के पूर्व अध्यक्ष रोमेश भट्टाचारजी एक मीडिया रिपोर्ट में कहते हैं, ‘सिर्फ इन दो जिलों में उस समय 16,441 हेक्टेयर पर अफीम की खेती हो रही थी. यह प्रदेश अफीम में गुम होता जा रहा है.’ भट्टाचारजी देश के नार्कोटिक्स कमिश्नर भी रह चुके हैं.

बड़ा खुलासा! बौखलाए चीन ने ZEE NEWS के साथ-साथ इनकी कराई जासूसी, देखें पूरी लिस्ट

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सामरिक से लेकर कूटनीतिक मोर्चे तक भारत का सामना करने में नाकाम चीन ने भारत के खिलाफ सबसे बड़ी जासूसी साजिश रची है. चीन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की जासूसी करवा रहा है. कई केंद्रीय मंत्रियों और विपक्ष के नेताओं की जासूसी भी करवाई जा रही है. देश के करीब 10 हजार प्रमुख लोगों की जासूसी चीन करवा रहा है. चीन की एक कंपनी को ये जिम्मा दिया गया है. बताया जाता है कि ये कंपनी चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी है. 


ZEE NEWS के न्यूजरूम में चीन ने की घुसपैठ कोशिश की. चीन के सामान के खिलाफ ZEE NEWS ने 'मेड इन इंडिया' मुहिम चलाई थी. चीन ने Zee News, Zee Business, WION के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी की भी जासूसी करवाई है. एलएसी पर चीन के अतिक्रमण के खिलाफ ZEE NEWS ने लगातार रिपोर्टिंग की.


राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
-पीएम नरेंद्र मोदी 
- चीफ जस्टिस एसए बोबडे
- जस्टिस एएम खानविलकर
- लोकपाल जस्टिस पीसी घोष
- सीएजी जीसी मुर्मू
- कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
​- सीडीएस जनरल बिपिन रावत
- ममता बनर्जी
- अशोक गहलोत
- उद्धव ठाकरे
-नवीन पटनायक
- शिवराज सिंह चौहान
- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण
- रेल मंत्री पीयूष गोयल
- कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद
- कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी
-- भारत पे के संस्थापक निपुण मेहरा
- उद्योगपति रतन टाटा
- उद्योगपति गौतम अडानी
-ऑथ ब्रिज के अजय त्रेहन
- वरिष्ठ सैन्य अधिकारी, उद्योगपतियों की भी जासूसी की गई है.  

Thursday, September 10, 2020

एशिया के सबसे बड़े सोलर प्‍लांट के बारे में 10 तथ्य

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 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 जुलाई, 2020 को एमपी के रीवा में एशिया के सबसे बड़े सोलर प्लांट का उद्घाटन किया. उद्घाटन का समारोह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुआ. आइए इस लेख के माध्यम से एशिया के सबसे बड़े सोलर प्लांट के बारे में 10 तथ्यों को अध्ययन करते हैं.


उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि "सौर ऊर्जा आज की नहीं बल्कि 21वीं सदी में ऊर्जा की जरूरत का एक प्रमुख माध्यम बनने जा रही है. क्योंकि सौर ऊर्जा सुनिश्चित, शुद्ध और सुरक्षित है." उन्होंने आगे कहा "आज रीवा ने वाकई इतिहास रच दिया है. रीवा की पहचान मां नर्मदा के नाम और सफेद बाघ से रही है. अब इसमें एशिया के सबसे बड़े सोलर पावर प्रोजेक्ट का नाम भी जुड़ गया है.  इस सोलर प्लांट से मध्य प्रदेश के लोगों को, उद्योगों को तो बिजली मिलेगी ही,दिल्ली में मेट्रो रेल तक को इसका लाभ मिलेगा.

प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि परियोजना इस दशक में शुद्ध और स्वच्छ ऊर्जा के लिए पूरे रीवा का प्रमुख केंद्र बनेगी. दिल्ली मेट्रो के लिए, यह रीवा के आसपास के पूरे क्षेत्र को भी बिजली की आपूर्ति करेगा. उन्होंने यह भी बताया कि नीमच, शाजापुर, छतरपुर और ओंकारेश्वर सहित विभिन्न परियोजनाएं प्रगति पर हैं और इसलिए मध्य प्रदेश जल्द ही देश में सौर ऊर्जा का मुख्य केंद्र होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मध्य प्रदेश के रीवा में स्थापित 750 मेगावाट की सौर परियोजना राष्ट्र को समर्पित की. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई अन्य मंत्रियों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया.

एशिया के सबसे बड़े सोलर प्‍लांट के बारे में 10 तथ्य

1. रीवा सौर ऊर्जा परियोजना एशिया की सबसे बड़ी 750 मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजना है. यह परियोजना रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड (RUMSL), एमपी ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (MPUVN) और सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) का एक संयुक्त उद्यम है.

2. सौर ऊर्जा परियोजना लगभग 1590 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है और यह एशिया में सबसे बड़ी सिंगल साईट सोलर प्लांट में से एक है.

3. रीवा सौर ऊर्जा परियोजना में एक सौर पार्क के अंदर स्थित 500 हेक्टेयर भूमि पर 250-250 मेगावाट की तीन सौर उत्पादन इकाइयां शामिल हैं.

4. अल्ट्रा-मेगा सौर ऊर्जा परियोजना से प्रति वर्ष लगभग 15 लाख टन कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलने की उम्मीद है.

5. रिपोर्टों के अनुसार, इस परियोजना से, दिल्ली मेट्रो को 24 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त होगी और शेष 76 प्रतिशत की आपूर्ति मध्य प्रदेश के राज्य DISCOM को की जाएगी.

6. रीवा परियोजना दिल्ली मेट्रो सहित राज्य के बाहर संस्थागत ग्राहकों को आपूर्ति करने वाली यह पहली अक्षय ऊर्जा परियोजना है.

7. रीवा सौर ऊर्जा परियोजना को अपने नवाचार और उत्कृष्टता के लिए World Bank Group President's Award मिला है.

8. इसके अलावा, रीवा परियोजना को पीएम की "A Book of innovation: New Beginnings." में शामिल किया गया.

9. रीवा परियोजना वर्ष 2022 तक 175 GW की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जिसमें 100 GW की सौर उत्पादन क्षमता शामिल है.

10. सौर पार्क के विकास के लिए, केंद्र द्वारा RUMSL को 138 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की गई है.

एशिया की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा परियोजना का महत्व

रीवा सोलर प्लांट परियोजना को इसकी मजबूत संरचना और नवाचारों के लिए स्वीकार किया जा रहा है. इसके भुगतान सुरक्षा तंत्र से बिजली डेवलपर्स के लिए जोखिम कम करने की उम्मीद है और इसे अक्षय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल के रूप में अनुशंसित किया गया है.

यह पहली अक्षय ऊर्जा परियोजना है जो राज्य के बाहर एक संस्थागत ग्राहक की आपूर्ति करेगी और 2022 तक 175 गीगावॉट की सौर उत्पादन क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को पूरा करेगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, 21वीं शताब्दी में सौर ऊर्जा एक महत्वाकांक्षी भारत की ऊर्जा जरूरतों को प्रदान करने के लिए एक प्रमुख माध्यम होगा सौर ऊर्जा परियोजनाएं आत्मानिभर भारत का सही प्रतिनिधित्व करती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) को सौर ऊर्जा के मामले में पूरी दुनिया को एकजुट करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था. जिसकी स्पिरिट One World, One Sun, One Grid थी. पर्यावरण की सुरक्षा केवल कुछ परियोजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन का मार्ग है.

नई शिक्षा नीति-2020: प्रमुख पॉइंट्स एक नजर में

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 भारत में नयी शिक्षा नीति 2020 को कैबिनेट की मंज़ूरी 29 जुलाई 2020 को मिल गई है. अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी.इस नीति में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6% भाग खर्च किया जायेगा. देश में सबसे पहली शिक्षा नीति इंदिरा गाँधी द्वारा 1968 में शुरू की गयी थी. आइये इस लेख में देश की नयी शिक्षा नीति 2020 के महत्वपूर्ण पॉइंट्स को जानते हैं.


जिस तरह से एक जगह रुका हुआ पानी बदबू मारने लगता है उसी तरह से एक पुरानी पद्धति (जिसे रट्टू तोते वाली शिक्षा व्यवस्था भी कहा जा सकता है) से पढाई करने पर बच्चों को शिक्षा से लाभ मिलना बंद हो जाता है.

यही कारण है कि भारत में समय समय पर शिक्षा नीति को बदला जाता रहा है.भारत में सबसे पहली शिक्षा नीति पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी ने 1968 में शुरू की थी. इसके बाद अगली नीति राजीव गाँधी की सरकार ने 1986 में दूसरी शिक्षा नीति बनायीं जिसमें नरसिम्हा राव सरकार ने 1992 में कुछ बदलाव किये थे.

इस प्रकार वर्तमान में भारत में 34 साल पुरानी शिक्षा नीति चल रही थी जो कि बदलते परिद्रश्य के साथ प्रभावहीन हो रही थी. यही कारण है कि वर्ष 2019 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नयी शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार कर जनता से सलाह मांगी थी.


भारत की नयी शिक्षा नीति 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने  29 अगस्त को मंजूरी दी है. इस नयी शिक्षा नीति का मसौदा पूर्व इसरो प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है. आइये कुछ पॉइंट्स में जानते हैं कि नयी शिक्षा नीति 2020 के मुख्य बिंदु क्या हैं?

नई शिक्षा नीति-2020: प्रमुख पॉइंट्स एक नजर में:

1. नयी शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6% खर्च किया जायेगा जो कि अभी 4.43% है.

2. अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा में होगी.


3. मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है. अतः रमेश पोखरियाल निशंक अब देश के शिक्षा       मंत्री कहलाएंगे.

4. लॉ और मेडिकल एजुकेशन को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा. अर्थात उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा. उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी.


5.छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे. इसके लिए इच्छुक छात्रों को 6वीं कक्षा के बाद से ही इंटर्नशिप करायी जाएगी. 

6. म्यूज़िक और आर्ट्स को पाठयक्रम में शामिल कर बढ़ावा दिया जायेगा.

7. ई-पाठ्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NETF) बनाया जा रहा है जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रहीं हैं.

8. वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा में फ़ीसद सकल नामांकन अनुपात GER (Gross Enrolment Ratio) 50% पहुँचाने का लक्ष्य है जो कि वर्ष 2018 में 26.3% था.

9. नयी शिक्षा नीति 2020 का सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट है मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम लागू होना. अभी यदि कोई छात्र तीन साल इंजीनियरिंग पढ़ने या छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारण से आगे की पढाई नहीं कर पाता है तो उसको कुछ भी हासिल नहीं होता है. 
लेकिन अब मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम में एक साल के बाद पढाई छोड़ने पर सर्टिफ़िकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद पढाई छोड़ने के बाद डिग्री मिल जाएगी. इससे देश में ड्राप आउट रेश्यो कम होगा.

10. अगर कोई छात्र किसी कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में एडमिशन लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकता है और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकता है और इसे पूरा करने के बाद फिर से पहले वाले कोर्स को जारी रख सकता है.

11. अभी सेंट्रल यूनिवर्सिटीज, डीम्ड यूनविर्सिटी, और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए अलग-अलग नियम हैं. नई एजुकेशन पॉलिसी 2020 में सभी के लिए समान नियम होंगे.

12. देश में शोध और अनुसन्धान को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका के NSF (नेशनल साइंस फाउंडेशन) की तर्ज पर एक शीर्ष निकाय के रूप में नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन (NRF) की स्थापना की जाएगी. NRF की स्थापना का मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध की संस्कृति को बढ़ावा देना है. यह स्वतंत्र रूप से सरकार द्वारा, एक बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स द्वारा शासित होगा और बड़े प्रोजेक्टों की फाइनेंसिंग करेगा.

तो ये थे भारत की नई शिक्षा नीति के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु. उम्मीद है कि इस नई शिक्षा नीति से देश में रोजगारपरक शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा और रटकर पढ़ने की संस्कृति से बच्चों को छुटकारा मिलेगा. 

जानें Halo क्या है और नासा के हबल टेलीस्कोप से क्या ज्ञात होता है?

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 वैज्ञानिकों ने नासा (NASA) के हबल टेलीस्कोप (Hubble Telescope) के जरिए एंड्रोमीडा गैलेक्सी (Andromeda Galaxy) के पास विशाल Halo की विस्तृत जानकारी हासिल की है. आखिर Halo क्या है? आइये इस लेख के माध्यम से इसके बारे में अध्ययन करते हैं?



नासा के हबल टेलीस्कोप (Hubble Telescope) ने एंड्रोमीडा गैलेक्सी (Andromeda Galaxy) के पास विशाल Halo की विस्तृत जानकारी हासिल की है. उन्होंने यह भी पाया कि Halo में एक स्तरित संरचना होती है, जिसमें गैस के दो मुख्य अलग-अलग गोले या शेल्स (shells) होते हैं. यह एक गैलेक्सी के आसपास के Halo का सबसे व्यापक अध्ययन है.

जैसा की हम जानते हैं कि हमारा सोलर सिस्टम मिल्की वे गैलेक्सी का हिस्सा है. वैज्ञानिकों को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि प्लाज्मा का फैलने वाला यह दिखाई न देने वाला Halo, आकाशगंगा से 1.3 मिलियन प्रकाश-वर्ष तक हमारे मिल्की वे का लगभग आधा भाग और कुछ दिशाओं में 2 मिलियन प्रकाश-वर्ष तक फैला हुआ है. इसका मतलब यह है कि एंड्रोमेडा का Halo पहले से ही हमारी अपनी आकाशगंगा के Halo में टकरा रहा है.

हबल टेलीस्कोप के बारे में

हबल टेलीस्कोप (Hubble Telescope) एक स्पेस टेलीस्कोप है जिसे 1990 में low Earth orbit में लॉन्च किया गया था और यह ऑपरेशन में है. यह हबल टेलीस्कोप, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के योगदान के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा निर्मित  है.

कुछ साल में हबल टेलीस्कोप रिटायर हो जाएगा और इसकी जगह जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) लेगा. जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST या "Webb") एक स्पेस टेलीस्कोप है जिसे हबल स्पेस टेलीस्कोप की जगह नासा के प्रमुख खगोल भौतिकी मिशन के रूप में इस्तेमाल करने की योजना है.

आखिर Halo  क्या है?

एक विशाल गैसीय आवरण को Halo कहते हैं. एंड्रोमीडा गैलेक्सी का यह छोटा सा दिखाई न देने वाला Halo प्लाज्मा का बना है. यह अपनी गैलेक्सी से 13 लाख प्रकाशवर्ष की दूरी तक फैला हुआ है और कई दिशाओं में तो यह 20 लाख प्रकाशवर्ष की दूरी तक फैला है.

सूरज भी एक स्टार है और मिल्की वे गैलेक्सी में लगभग 400 बिलियन स्टार्स हैं और हो सकता है कि इससे ज्यादा प्लैनेट्स भी हों. बिलकुल मिल्की वे गैलेक्सी की तरह एंड्रोमेडा गैलेक्सी भी है इसमें भी बिलियनस में स्टार्स और प्लैनेट्स हैं. हमारा यूनिवर्स काफी ज्यादा बड़ा है. विज्ञानिकों के अनुसार आने वाले बिलियन सालों में ये दोनों गैलेक्सी टकरा जाएंगी और फिर ये दोनों गैलेक्सी मिलकर एक गैलेक्सी बन जाएंगी. कई विज्ञानिकों के अनुसार उस गैलेक्सी का नाम मिल्क ड्रोमेडा होगा. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि ये इवेंट लगभग 4 बिलियन साल बाद होगा और क्या इसे मानव जाती देख पाएगी.  

वैज्ञानिकों द्वारा ऐसा बताया जा रहा है कि Halo हमारी गैलेक्सी यानी मिल्की वे के आधे रास्ते तक आ गया है. इसका मतलब यह है कि यह हमारी गैलेक्सी की ओर आ रहा है. एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित इस शोध में वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि इस Halo की परतदार संरचना है, जिसमें दो स्पष्ट गैस के गोले हैं.

Halo कितने इम्पोर्टेन्ट होते हैं?

समैन्था बेरेक (Samantha Berek), अमेरिका के कनेक्टिकट, न्यू हेवल की येल यूनिवर्सिटी की सह अन्वेषणकर्ता ने बताया कि गैलेक्सियों के गैस के ये विशाल Halo को समझना बहुत जरूरी है. उन्होंने बताया कि गैस के इस भंडार में भविष्य में गैलेक्सी में तारों के निर्माण और सुपरनोवा जैसी घटनाओं के लिए ईंधन होता है. बेरेक के अनुसार इनमें गैलेक्सी के इतिहास और भविष्य के बारे में जानकारी के बहुत सारे संकेत भी होते हैं.
इन संकेतों के बारे में एंड्रोमीडा के गैसीय Halo में विशाल मात्रा में खोजे गए भारी तत्व (Elements) से मिलता है. ये भारी तत्व तारों के अंदर के हिस्से में बनते हैं  और तारों के मरने के बाद प्रचंडता से अंतरिक्ष में उत्सर्जित होते हैं. इसके बाद तारों के विस्फोट के कारण ये पदार्थ इस  Halo में मिल जाते हैं.

आखिर Halo में ऐसा क्या है?

इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता और अमेरिका में इंडियाना की नाट्रे डेम यूनिवर्सिटी से निकोलस लेहनर ने बताया, “हमने इस Halo के अंदर के गोले को और ज्यादा जटिल और गतिमान पाया है. इसका आकार करीब पांच लाख प्रकाश वर्ष है. वहीं इसका बाहरी गोला जटिल नहीं है लेकिन ज्यादा गर्म है. गैलेक्सी की डिस्क में सुपरनोवा की गतिविधि के कारण अंदर को Halo पर ज्यादा प्रभाव पड़ा होगा जिसकी वजह से ये अंतर आ गया होगा.

यहीं आपको बता दें कि लेहनर की टीम ने 2015 के पहले ही साल में एंड्रोमीडा गैलेक्सी का अध्ययन किया है. उस समय भी इसको उनकी टीम ने एक विशाल और भारी Halo के तौर पर देखा था. परन्तु उस समय यह कितना जटिल है के बारे में बहुत ही कम जानकारी थी. अब इसका विस्तार से मैप बन रहा है जिससे उसके सटीक आकार और भार के बारे में पता चला पाएगा.

एंड्रोमीडा गैलेक्सी के बारे में 

एंड्रोमीडा गैलेक्सी को M31 भी कहते हैं. ये हमारी गैलेक्सी के सबसे पास स्थित एक सर्पिल गैलेक्सी है जिसमें लगभग बिलियन्स में तारे होंगे और इसका आकार हमारी मिल्की वे गैलेक्सी के बराबर ही माना जाता है. वैज्ञानिकों के अनुसार यह गैलेक्सी हमसे केवल 25 लाख प्रकाश वर्ष दूर है. 
प्रोजेक्ट AMIGA (Absorption Map of Ionized Gas in Andromeda) नामक एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि 43 क्वासर (quasars) से प्रकाश की जांच की ब्लैक होल द्वारा संचालित सक्रिय आकाशगंगाओं के बहुत दूर, शानदार कोर - एंड्रोमेडा से परे स्थित है. क्वासर (quasars) Halo के पीछे बिखरे हुए हैं, जिससे वैज्ञानिकों को कई क्षेत्रों की जांच करने की अनुमति मिलती है.

टेक्निकली ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि एंड्रोमेडा गैलेक्सी और मिल्की वे गैलेक्सी में टकराने की शुरुआत हो गई है. एंड्रोमेडा के पास का halo अब मिल्की वे तक आ गया है यानी collide कर रहा है. इस डिस्कवरी से यह भी ज्ञात होता है कि हर गैलेक्सी की अपनी एक Halo होती है.  वैज्ञानिकों के अनुसार इससे यह भी पता लगता है कि कैसे गैलेक्सी की फार्मेशन या संरचना होती है. 


चंबल एक्सप्रेस-वे: महत्व, लाभ और मुख्य तथ्य

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 चंबल एक्सप्रेस-वे राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले गरीबों और आदिवासियों के लिए एक गेम-चेंजर हो सकता है. आइए विस्तार से चंबल एक्सप्रेस-वे, इसका महत्व, लाभ, परियोजना की लागत, इत्यादि के बारे में अध्ययन करते हैं.


चंबल एक्सप्रेस-वे: 4 जुलाई, 2020 को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से चंबल एक्सप्रेस-वे की प्रस्तावित परियोजना की समीक्षा की. इस अवसर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया उपस्थित थे.

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और एमएसएमई मंत्री ने परियोजना बनाने के लिए शीघ्र पर्यावरण मंजूरी, भूमि अधिग्रहण और रॉयल्टी / स्थानीय कर छूट पर जोर दिया. यह रोजगार की विशाल संभावनाएं भी प्रदान करेगा.

चंबल एक्सप्रेस-वे के बारे में

चंबल एक्सप्रेस-वे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों में प्रस्तावित छह लेन का एक्सप्रेस-वे है. चंबल एक्सप्रेसवे नाम दिया गया है क्योंकि इसे चंबल नदी के किनारे बनाया जाएगा. एक्सप्रेस-वे राजस्थान में कोटा को उत्तर प्रदेश में श्योपुर और मुरैना जिलों के माध्यम से इटावा से जोड़ेगा. प्रस्तावित एक्सप्रेस-वे की लागत 8,250 करोड़ रुपये है.

404 किमी लंबा प्रस्तावित एक्सप्रेस-वे मध्य प्रदेश के माध्यम से कानपुर से कोटा तक एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है और फिर दिल्ली मुंबई कॉरिडोर में शामिल होता है.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस: जन्म, पुण्यतिथि, उपलब्धियां और योगदान

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 नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक भारतीय राष्ट्रवादी हैं जिनकी भारत के प्रति देशभक्ति कई भारतीयों के दिलों में छाप छोड़ गई है। सुभाष चंद्र बोस की आज 76 वीं पुण्यतिथि है।



नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक भारतीय राष्ट्रवादी थे जिनकी देशभक्ति कई भारतीयों के दिलों में छाप छोड़ गई है। उन्हें 'आजाद हिंद फौज' के संस्थापक के रूप में जाना जाता है और उनका प्रसिद्ध नारा  है 'तुम मुझसे कुछ मत करोगे, मैं आजादी दूंगा' था। सुभाष चंद्र बोस की आज 76 वीं पुण्यतिथि है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 18 अगस्त, 1944 को ताइवान के एक अस्पताल में एक विमान दुर्घटना में जलने के बाद मृत्यु हो गई थी।

सुभाष चंद्र बोस को असाधारण नेतृत्व कौशल और करिश्माई वक्ता के साथ सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। उनके प्रसिद्ध नारे हैं 'तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा', 'जय हिंद', और 'दिल्ली चलो'। उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई योगदान दिए। उन्हें अपने उग्रवादी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है, जिसका इस्तेमाल उन्होंने ब्रितानी हुकूमत से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए किया था। वे अपनी समाजवादी नीतियों के लिए भी जाने जाते हैं।

सुभाष चंद्र बोस: पारिवारिक इतिहास और प्रारंभिक जीवन

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक (उड़ीसा) में प्रभाती दत्त बोस और जानकीनाथ बोस के घर हुआ था। उनके पिता कटक में वकील थे और उन्होंने "राय बहादुर" की उपाधि प्राप्त की थी। सुभाष नेप्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल (वर्तमान में स्टीवर्ट हाई स्कूल) से स्कूली शिक्षा प्राप्त की और प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक किया। 16 वर्ष की आयु में वे स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण की से प्रभावित हुए। इसके बाद उन्हें उनके माता-पिता ने भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। 1920 में उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की, लेकिन अप्रैल 1921 में भारत में राष्ट्रवादी उथल-पुथल की सुनवाई के बाद, उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आ गए।

सुभाष चंद्र बोस और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

वह असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए, जिसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी, जिनकी बदौलत कांग्रेस एक शक्तिशाली अहिंसक संगठन के रूप में उभरी। आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने बोस को चित्तरंजन दास के साथ काम करने की सलाह दी, जो आगे चलकर उनके राजनीतिक गुरु बने। उसके बाद वह बंगाल कांग्रेस के स्वयंसेवकों के युवा शिक्षक और कमांडेंट बन गए। उन्होंने 'स्वराज' अखबार की शुरूआत की। सन् 1927 में जेल से रिहा होने के बाद, बोस कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने और जवाहरलाल नेहरू के साथ भारत को स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

सन् 1938 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया, जिसने व्यापक औद्योगीकरण की नीति तैयार की। हालांकि, यह गांधीवादी आर्थिक विचार के अनुरूप नहीं था, जो कुटीर उद्योगों की धारणा से जुड़ा हुआ था और देश के अपने संसाधनों के उपयोग से लाभान्वित था। बोस का संकल्प 1939 में आया जब उन्होंने पुनर्मिलन के लिए गांधीवादी प्रतिद्वंद्वी को हराया। गांधी के समर्थन की कमी के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया। 

सुभाष चंद्र बोस और फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन

ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक भारत में एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था, जो 1939 में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारत कांग्रेस के भीतर एक गुट के रूप में उभरा। वे कांग्रेस में अपने वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते थे। फॉरवर्ड ब्लॉक का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस पार्टी के सभी कट्टरपंथी तत्वों को लाना था, ताकि वह समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के पालन के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के अर्थ का प्रसार कर सकें।

सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजादी के लिए संघर्ष में एक महत्वपूर्ण विकास आजाद हिंद फौज का गठन और कार्यकलाप था, जिसे भारतीय राष्ट्रीय सेना या आईएनए के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय क्रांतिकारी राश बिहारी बोस जो भारत से भाग कर कई वर्षों तक जापान में रहे, उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में रहने वाले भारतीयों के समर्थन के साथ भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की थी।

जब जापान ने ब्रिटिश सेनाओं को हराया और दक्षिण-पूर्वी एशिया के लगभग सभी देशों पर कब्जा कर लिया, तो लीग ने भारतीय युद्ध-बंदियों शामिल कर भारतीय राष्ट्रीय सेना का निर्माण किया। जनरल मोहन सिंह, जो ब्रिटिश भारतीय सेना में एक अधिकारी थे, उन्होंने सेना को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस बीच सुभाष चंद्र बोस 1941 में भारत से भाग कर जर्मनी चले गए और भारत की स्वतंत्रता के लिए काम करने लगे। सन् 1943 में वह भारतीय स्वतंत्रता लीग का नेतृत्व करने के लिए सिंगापुर आए और भारतीय राष्ट्रीय सेना (आज़ाद हिंद फौज) का पुनर्निर्माण करके इसे भारत की स्वतंत्रता के लिए एक प्रभावी साधन बनाया। आजाद हिंद फौज में लगभग 45,000 सैनिक शामिल थे, जो युद्ध-बंदियों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी एशिया के विभिन्न देशों में बसे भारतीय भी थे।

सुभाष चंद्र बोस अब नेताजी के रूप में लोकप्रिय थे।  21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत (आज़ाद हिंद) की अनंतिम सरकार के गठन की घोषणा की। नेताजी अंडमान गए जिस पर जापानियों का कब्जा था और वहां उन्होंने भारत का झंडा फहराया था। सन् 1944 की शुरुआत में, आज़ाद हिंद फौज (INA) की तीन इकाइयों ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिए हमले में भाग लिया। शाह नवाज खान, आजाद हिन्द फौज के सबसे प्रमुख अधिकारियों में से एक के अनुसार, जिन सैनिकों ने भारत में प्रवेश किया था, वो जमीन लेट गए और पूरी भावना के साथ अपनी मातृभूमि की पवित्र मिट्टी को चूमा। हालाँकि, आज़ाद हिंद फ़ौज द्वारा भारत को आज़ाद कराने का प्रयास विफल रहा।

भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन जापानी सरकार को भारत के मित्र के रूप में नहीं देखता था। इसकी सहानुभूति उन देशों के लोगों के साथ थी जो जापान की आक्रामकता के शिकार थे। हालाँकि, नेताजी का मानना ​​था कि जापान द्वारा समर्थित आज़ाद हिंद फौज और भारत के अंदर विद्रोह की मदद से भारत पर ब्रिटिश शासन समाप्त हो सकता है। आजाद हिंद फौज का 'दिल्ली चलो' नारा और सलाम 'जय हिंद' देश के अंदर और बाहर बसे भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। नेताजी ने भारत की आजादी के लिए दक्षिण-पूर्वी एशिया में रहने वाले सभी धर्मों और क्षेत्रों के भारतीयों के साथ मिलकर रैली की थी।

भारतीय महिलाओं ने भी भारत की स्वतंत्रता के लिए गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आजाद हिंद फौज में एक महिला रेजिमेंट का गठन किया गया था, जिसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन के हाथों में थी। इसे रानी झांसी रेजिमेंट कहा जाता था। आजाद हिंद फौज भारत के लोगों के लिए एकता और वीरता का प्रतीक बन गया। नेताजी, जो स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के सबसे महान नेताओं में से एक थे, वे जापान के आत्मसमर्पण करने के कुछ दिनों बाद एक हवाई दुर्घटना में मारे गए। 

द्वितीय विश्व युद्ध 1945 में फासीवादी जर्मनी और इटली की हार के साथ समाप्त हुआ। युद्ध में लाखों लोग मारे गए थे। जब युद्ध अपने अंत के करीब था और इटली और जर्मनी पहले ही हार गए थे, यूएएस ने जापान-हिरोशिमा और नागासाकी के दो शहरों पर परमाणु बम गिराए। कुछ ही पलों में ये शहर ज़मीन पर धंस गए और 200,000 से अधिक लोग मारे गए। जापान ने इसके तुरंत बाद आत्मसमर्पण कर दिया। यद्यपि परमाणु बमों के उपयोग ने युद्ध को बंद कर दिया, लेकिन इसने दुनिया में एक नए तनाव और अधिक से अधिक घातक हथियार बनाने के लिए एक नई प्रतिस्पर्धा का नेतृत्व किया, जो संपूर्ण मानव जाति को नष्ट कर सकता है।